कमल पिमोली/श्रीनगर गढ़वाल. हिमालय की गोद में एक ऐसी संजीवनी बूटी पाई जाती है जो कई बीमारियों के इलाज में कारगर है. कीड़े के काटने से लेकर कैंसर जैसी घातक बिमारी में इसका प्रयोग किया जाता है, इस औषधीय पौधे का नाम है “सतुवा” लेकिन बदलते समय के साथ यह जड़ी-बूटी हिमालय से विलुप्त होती जा रही है. अवैध रूप से इसका दोहन, कालाबाजारी सतुवा को खतरे में डाल रहा है. ऐसे में उच्च हिमालयी पादप कार्यिकी शोध केन्द्र (HAPPRC) के वैज्ञानिक इसकी खेती को लेकर फील्ड से लेकर लैब में कार्य कर रहे हैं. .
एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय में हेप्रेक विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. बबीता पाटनी बताती हैं कि सतुवा एक ऐसा औषधीय पौधा है जिसका प्रयोग छोटी से लेकर बड़ी बीमारी में किया जाता है. सतुवा में मिलने वाले औषधीय गुणों के कारण इसकी बाजार में काफी डिमांड है, लेकिन मांग के अनुरूप यह जड़ी बूटी उपलब्ध नहीं है. सतुवा का उपयोग स्थानीय रूप से बुखार, सिरदर्द, घाव और जलन को ठीक करने के लिए किया जाता है. इसका उपयोग टॉनिक के रूप में भी किया जाता है. इसके प्रकंद का उपयोग पेट के दर्द के लिए, या पेट के कीड़ों को दूर करने, कीड़ों को मारने, बलगम निकालने के लिए किया जाता है.
तस्करी से हो रहा भारी नुकसान
डॉ. बबीता पाटनी बताती हैं कि सतुवा की अंकुरण दर (जर्मिनेशन रेट) बहुत धीमा है. जिस कारण इसके पूर्ण रूप से बड़े होने में लगभग दो साल का समय लग सकता है. वहीं बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप के कारण सतुवा की प्रजाती विलुप्त होने की कगार पर है. लगातार हो रहे दोहन के कारण इसके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. सतुवा को दुर्लभ प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है. इसके बावजूद अच्छा दाम मिलने के कारण उत्तराखंड के कई हिस्सों में इसकी तस्करी होती है. इसका दोहन करते समय लोग सतुवा के मदर प्लांट को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं. जिससे इस जड़ी-बूटी की अंकुरण गति धीमी हो रही है.
कैंसर के इलाज में कारगर
डॉ. बबीता पाटनी बताती हैं कि सतुवा का प्रयोग पुराने समय से ही पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले लोग औषधि के रूप में करते आ रहे हैं. यह 1700 मीटर से लेकर 2400 मीटर की उंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाने वाली जड़ी बूटी है. कीड़ों के काटने में इसका प्रयोग राहत देता है. वहीं कैंसर जैसी घातक बीमारी में भी सतुवा रामबाण इलाज है. सतुवा में फाइटो एक्टिव कंपोनेंट पाया जाता है जिसके कारण बड़ी-बड़ी फार्मा कंपनी सतुवा का प्रयोग दवाई बनाने के लिए करती हैं. वहीं इसमें एंटी फंगल, व हीलिंग प्रॉपर्टी भी पाई जाती है.
किसानों को सतुवा की खेती से जोड़ने का प्रयास
डॉ. बबीता पाटनी बताती हैं कि इस बेशकीमती जड़ी-बूटी को संरक्षित करने के लिए हेप्रेक संस्थान द्वारा काम किया जा रहा है. साथ ही इसकी खेती करने को लेकर भी किसानों को प्रेरित किया जा रहा है. जिससे की यह संरक्षित होने के साथ किसानों की आजीविका का भी स्रोत बन सके. डॉ बबीता पाटनी कहती हैं कि सतुवा की खेती करते समय मिट्टी की गुणवत्ता का ध्यान रखना आवश्यक है. साथ ही इसके प्लांटिंग का एक निर्धारित समय रहता है. नवंबर-दिसंबर माह में यह पौधा लगाया जाता है, अप्रैल-मई तक इसमें अंकुर आने शुरू हो जाते हैं. वहीं अगले साल सितंबर नवंबर माह तक पौधा तैयार हो जाता हैं.
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FIRST PUBLISHED : May 9, 2024, 18:12 IST