ईशा बिरोरिया/ऋषिकेश: लहसुनिया रत्न, जिसे इंग्लिश में “Cats eye” कहा जाता है जो एक प्रकार का मटमैले से रंग का चमकीला जैसा प्राकृतिक रत्न है. लहसुनिया रत्न को धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है. कुछ लोग इसे खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक मानते हैं. वहीं, ज्योतिष शास्त्र में इसे केतु ग्रह से जोड़ कर देखा जाता है.
केतु ग्रह के लिए लहसुनिया रत्न
लोकल 18 के साथ खास बातचीत में उत्तराखंड के ऋषिकेश में रहने वाले ज्योतिष अशोक ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार पृथ्वी पर 84 रत्न पाए जाते हैं. इनमें माणिक, हीरा, नीलम, पन्ना, लाल मूंगा, मोती, पुखराज, लहसुनिया मुख्य रत्न माने गए हैं. इन्हीं रत्नों को नवरत्न भी कहा जाता है. वहीं, बाकी सभी उपरत्न कहलाते हैं. गृह और राशि अनुसार पहने गए रत्न हमारे जीवन को विभिन्न प्रकार से लाभ देते हैं. वहीं बात अगर लहसुनिया रत्न की करें तो, केतु ग्रह के लिए लहसुनिया रत्न पहना जाता है. केतु ग्रह कमजोर होने के कारण हमारा व्यर्थ खर्च होता है. इसके साथ ही केतु के कमजोर होने से शारीरिक समस्याएं और अनावश्यक झगड़े भी होते हैं. इन सभी समस्याओं के निवारण के लिए लहसुनिया रत्न पहना जाता है.
लहसुनिया रत्न पहनने की सही विधि
अशोक ने बताया कि राहु और केतु ग्रह एक ही रक्षक के दो हिस्से हैं. इसलिए केतु एक पाप ग्रह कहलाता है. वहीं, केतु ग्रह को मजबूत करने के लिए लहसुनिया रत्न पहना जाता है. ये पहनने से इंसान को सद्बुद्धि मिलती है. क्योंकि केतु पाप ग्रह कहलाता है, तो वो हमारी बुद्धि को विकृत करता है. वहीं, इसे धारण करने की भी एक विधि है. ध्यान देने वाली बात यह है कि लहसुनिया रत्न को चांदी की अंगूठी में बनवाकर ही धारण करना चाहिए. शुक्रवार को रात में इसे पंचामृत में डाल दीजिए और फिर शनिवार की सुबह प्रातः स्नान के बाद करीब 21 बार केतु का जाप करके इसे बीच वाली उंगली में पहना जाता है.
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FIRST PUBLISHED : May 8, 2024, 17:59 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.