श्रीनगर गढ़वाल. पहाड़ की वह प्रेम गाथा जो वर्षोे से केवल लोक गीतों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के पास पहुंची है. उस प्रेम गाथा को अब इंडो—वेस्टर्न फ्यूजन के साथ कोक स्टूडियो ने रिलीज किया है. इस गीत में उत्तराखंड की लोक गायिका कमला देवी फीचर हुई हैं. उनके स्वर, ठेठ पहाड़ी अंदाज ने लोगों के दिलों में अलग ही जगह बनाई है. कोक स्टूडियो इंडिया ने बीती 8 मई को इस गाने को अपने यूट्यूब चैनल से रिलीज किया है. इस गीत में लोकगायिका कमला देवी के साथ, बॉलीवुड की जानी-मानी सिंगर नेहा कक्कड़ व दिग्विजय परिहार ने भी अपनी आवाज दी है.
4 घंटे में इस गाने पर 35 हजार से ज्यादा व्यूज आ चुके हैं. फैंस को उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में यह गीत मिलियन का आंकड़ा पार कर लेगा. पहाड़ की एक साधारण परिवार की महिला का कोक स्टूडियो तक पहुचने का सफर हर किसी को प्रेरित कर रहा है.
राजुला—मालूशाही की प्रेम कहानी का है गीत
एक प्रेम कहानी जो सदियों पुरानी है, लेकिन आज भी उत्तराखंड के पहाड़ों में जीवित है. उस प्रेम कहानी के दो पात्र हैं राजुला—मालूशाही, इन दोनों के प्रेम गाथा आज भी उत्तराखंड में लोकगीतों के रूप में गाई जाती है. इन लोकगीतों को गाने वाली उत्तराखंड के बागेश्वर गरूड़ क्षेत्र की रहने वाली कमला देवी को कोक स्टूडियों ने सीजन 2 में फीचर किया है. इस गीत का नाम ‘सुनचड़ी’ रखा गया है. म्यूजिक वीडियो में जहां कमला देवी पहाड़ी लुक में दिख रही हैं तो वहीं म्यूजिक में पहाड़ी टच देने के लिए हुड़का, ढोलक, थाली, ढोंर का भी इस्तेमाल किया गया है.
लोकप्रिय म्यूजिक प्रोग्राम है कोक स्टूडियो
दरअसल, कोक स्टूडियो भारतीय लोक संगीत से लेकर वर्तमान पॉप संगीत से लेकर हिप—हॉप और वेस्टर्न संगीत का फ्यूजन तैयार करता है. यह भारत के सबसे लोकप्रिय म्यूजिक प्रोग्राम में से एक है. इससे पहले भी जुबिन नौटियाल पहाड़ी फ्यूजन के साथ कोक स्टूडियो में फीचर कर चुके हैं.
कौन हैं कमला देवी
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की गरुड़ तहसील स्थित लखनी गांव की रहने वालीं कमला देवी के कंठ में साक्षात सरस्वती निवास करती हैं. वह उत्तराखंड की जागर गायिका हैं. कमला देवी बताती हैं कि उनका बचपन गाय-भैंसों के साथ जंगल और खेत-खलिहानों के बीच बीता. इस बीच 15 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई. ससुराल आईं तो यहां भी घर, खेतीबाड़ी में ही लगी रहीं. कमला कहती हैं कि उन्हें न्यौली, छपेली, राजुला, मालूशाही, हुड़कीबोल आदि गीतों को गाने का शौक था. जंगल जाते वक्त वह गुनगुनाती और अपनी सहेलियों को भी सुनाती थीं. समय के साथ उन्हें स्टेज प्रोग्राम मिलने लगे. उन्होंने आकाशवाणी के लिए भी जगार गाए हैं.
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FIRST PUBLISHED : May 10, 2024, 17:20 IST