हल्द्वानी. आज के दौर में हर कोई कुछ नया सीखना चाहता है. बच्चे और युवाओं से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक पारंपरिक गतिविधियों और कलाओं की ओर आकर्षित हो रहे हैं. उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में भी बच्चे और युवा मिट्टी के बर्तन बनाने (पॉटरी) जैसी पारंपरिक गतिविधियों में दिलचस्पी ले रहे हैं. इसके जरिए लोग न सिर्फ अपना तनाव दूर कर रहे हैं. बल्कि पारंपरिक कला भी सीख रहे हैं.
हल्द्वानी के लालडॉठ स्थित कुमाऊं का पहला पॉटरी स्टूडियों खोला गया है. जहां लोग पारंपरिक गतिविधियों और कलाओं का आनंद लेते हुए तनाव को दूर कर रहे है. विशेषज्ञों के अनुसार पॉटरी एक हीलिंग थेरेपी और स्ट्रेस रिलीज़ का काम करती है. मिट्टी को छूते ही उसकी ठंडक दिल और दिमाग के भार या तनाव को दूर कर देती है. बच्चों और युवाओं को इस ओर आकर्षित होता देख हल्द्वानी में ऐसे केंद्र खुल रहे हैं. पॉटरी सीखने वालों में छात्रों के साथ कामकाजी युवा भी शामिल हैं.
6 साल के बच्चे से 60 साल के बुजुर्ग भी शामिल
पॉटरी स्टूडियों के संस्थापक विनय अस्थाना ने बताया कि स्टूडियों में 6 साल से 60 साल तक के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने आ रहे है. बच्चों, युवाओं के साथ-साथ योग प्रशिक्षक, मनोवैज्ञानिक, अकाउंट मैनेजर जैसे कई लोग पॉटरी की कला सीख रहे हैं.
मेडिटेशन का काम करती है पॉटरी
योग प्रशिक्षक हर्षवर्धन मेहरा ने बताया कि पॉटरी मेडिटेशन का भी काम करती है. जैसे मेडिटेशन में हमें अपना ध्यान केंद्रित करना पड़ता है, वैसे ही मिट्टी के बर्तन बनाते समय भी हमें सारा ध्यान एक ही चीज पर केंद्रित करना पड़ता है. अगर थोड़ा सा भी ध्यान भटका तो पूरी कलाकृति खराब हो सकती है. बताया कि पॉटरी करते समय हमें अपना हाथ, दिमाग, आंख सब एक ही जगह केंद्रित करनेपड़ते हैं जैसा स्ट्रेस रिलीज थेरेपी में किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED : May 5, 2024, 18:44 IST