शेरपुर गांव ने पेश की कोरोना जागरूकता की मिसाल

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खादर क्षेत्र के सबसे पिछड़े गांव शेरपुर बेला के ग्रामीणों ने कोरोना जागरूकता की मिसाल पेश की है। जहां एक ओर अधिकांश गांवों में स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंचने पर भी ग्रामीण जांच कराने से कतरा रहे हैं तो वहीं शेरपुर बेला के ग्रामीणों ने अधिकारियों से अनुरोध कर शिविर लगवाया। करीब 1200 की आबादी वाले इस गांव में 250 ग्रामीणों की जांच हो चुकी है। इनमें 13 की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई है। क्षेत्र के गोवर्धनपुर गांव को छोड़ दें तो अन्य गांवों में जांच का आंकड़ा 100 के आसपास ही सीमित है।
खानपुर ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर बाणगंगा नदी के किनारे स्थित शेरपुर बेला गांव माडाबेला ग्राम पंचायत का उप गांव है। यह क्षेत्र में सबसे पिछड़े गांव के रूप में जाना जाता है। गांव में 791 मतदाता हैं। बरसात के दिनों में आने वाली बाढ़ में सबसे ज्यादा यही गांव प्रभावित होता है। इसके चलते लोगों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है, लेकिन शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं से महरूम इस गांव के लोगों ने कोरोना के प्रति जागरूकता दिखाई है। ग्रामीणों के अनुरोध पर जब स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव में शिविर लगाया तो लोगों ने घरों से निकलकर खुद जांच करानी शुरू कर दी और देखते ही देखते गांव के ढाई सौ लोगों ने तीन दिन में जांच करा ली।
खानपुर सीएचसी प्रभारी डॉ. विनीत कुमार ने बताया कि शेरपुर बेला गांव में कुछ लोगों को बुखार की शिकायत थी। इस पर ग्रामीणों ने खुद कोरोना की जांच कराने का अनुरोध किया था। यही नहीं, ग्रामीणों ने दूसरे दिन भी जांच जारी रखने की मांग की थी। तीन दिन गांव में शिविर लगाकर 250 लोगों की कोरोना जांच की गई है। डॉ. विनीत कुमार का कहना है कि जहां लोग कोरोना की जांच कराने से कतरा रहे हैं तो वहीं शेरपुर बेला के ग्रामीण कोरोना की जांच कराकर गांव के साथ-साथ शहर के लोगों के लिए भी नजीर बन रहे हैं। उन्होंने बताया कि यहां अब तक 13 लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आ चुकी है। सभी को होम आइसोलेट कर दवा की किट उपलब्ध करा दी गई है। गांव की निवर्तमान प्रधान वर्षा देवी ने बताया कि ग्रामीणों के सकारात्मक रवैये से कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी।

यहां हुई थी 400 की जांच
गोवर्धनपुर गांव में करीब डेढ़ महीने पूर्व कस्तूरबा आवासीय विद्यालय में 15 छात्राओं के संक्रमित पाए जाने पर कैंप लगाकर 400 ग्रामीणों की की जांच की गई थी। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, लालचंद वाला गांव की करीब 4000 की आबादी में मात्र 200 की जांच हो पाई है। पोडोवाली गांव में करीब 2200 की आबादी में 100 लोगों की जांच हुई है। कलसिया और रहीमपुर गांव में भी करीब 100-100 लोगों की जांच हो पाई है।

खादर क्षेत्र के सबसे पिछड़े गांव शेरपुर बेला के ग्रामीणों ने कोरोना जागरूकता की मिसाल पेश की है। जहां एक ओर अधिकांश गांवों में स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंचने पर भी ग्रामीण जांच कराने से कतरा रहे हैं तो वहीं शेरपुर बेला के ग्रामीणों ने अधिकारियों से अनुरोध कर शिविर लगवाया। करीब 1200 की आबादी वाले इस गांव में 250 ग्रामीणों की जांच हो चुकी है। इनमें 13 की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई है। क्षेत्र के गोवर्धनपुर गांव को छोड़ दें तो अन्य गांवों में जांच का आंकड़ा 100 के आसपास ही सीमित है।

खानपुर ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 12 किमी दूर बाणगंगा नदी के किनारे स्थित शेरपुर बेला गांव माडाबेला ग्राम पंचायत का उप गांव है। यह क्षेत्र में सबसे पिछड़े गांव के रूप में जाना जाता है। गांव में 791 मतदाता हैं। बरसात के दिनों में आने वाली बाढ़ में सबसे ज्यादा यही गांव प्रभावित होता है। इसके चलते लोगों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है, लेकिन शिक्षा और चिकित्सा सुविधाओं से महरूम इस गांव के लोगों ने कोरोना के प्रति जागरूकता दिखाई है। ग्रामीणों के अनुरोध पर जब स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव में शिविर लगाया तो लोगों ने घरों से निकलकर खुद जांच करानी शुरू कर दी और देखते ही देखते गांव के ढाई सौ लोगों ने तीन दिन में जांच करा ली।

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यहां हुई थी 400 की जांच

गोवर्धनपुर गांव में करीब डेढ़ महीने पूर्व कस्तूरबा आवासीय विद्यालय में 15 छात्राओं के संक्रमित पाए जाने पर कैंप लगाकर 400 ग्रामीणों की की जांच की गई थी। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार, लालचंद वाला गांव की करीब 4000 की आबादी में मात्र 200 की जांच हो पाई है। पोडोवाली गांव में करीब 2200 की आबादी में 100 लोगों की जांच हुई है। कलसिया और रहीमपुर गांव में भी करीब 100-100 लोगों की जांच हो पाई है।



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