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मवेशियों के लिए गर्मी और उमस भरा मौसम नुकसानदायक साबित होता है। इस मौसम में पशुओं की आहार ग्रहण क्षमता घट जाती है साथ ही दूध उत्पादन भी कम हो जाता है। इस मौसम में संक्रामक रोगों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। इससे मवेशियों की जान को खतरा पैदा हो जाता है। पशु चिकित्सकों का मानना है कि पशुपालक थोड़ी सी सजगता से काम लें तो पशुओं को स्वस्थ रखना आसान है। वहीं दूध का उत्पादन गुणवत्ता के साथ बनाए रखा जा सकता है।
पशुपालक कालूराम चौधरी, उमेश कुमार और अजीम खान आदि ने बताया कि जो पशु एक माह पहले 10 किलो दूध दे रहा था, अब वह केवल छह से सात किलो दूध दे रहा है। उधर, पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. गुरप्रीत सिंह सचदेवा ने बताया कि उमस और गर्मी में पशुओं को थैलेरिया एवं बेबीसिया जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। इसके अलावा लंगड़ा बुखार, गल घोटू, मुंह-खुर्र का रोग व पका खुर सहित अन्य कई बीमारियां पशुओं को सहजता से निशाना बनाती है। संक्रमण के चलते दूध की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। पशुपालक को चाहिए कि वह मौसम के अनुसार ही पशुओं को चारा खिलाए। मवेशियों को धूप में न बांधे। गोबर व मूत्र की सही निकासी करें। पशुओं को छायादार एवं हवादार जगह पर बांधना जरूरी है। कोशिश की जाए कि उनके लिए पंखों की व्यवस्था हो। उनकी खुरली एवं उसके कोनों की लगातार सफाई करें। डॉ. एफडी खान ने बताया कि गर्मी में पशुओं को दिन में चारा देने की बजाय सुबह-शाम देने को प्राथमिकता दें। हरे चारे के साथ दिए जाने वाले दलिए की भी मात्रा ज्यादा रखें। जोहड़ या तालाब में पशु ले जाने से पहले उसको घर पर साफ एवं ठंडा पानी पिलाकर ले जाने का प्रयास करें ताकि गंदे पानी पीने से बचाया जा सके। शाम के समय मच्छरों के लिए पशुओं पर मच्छरदानी का प्रयोग करें। उपलों में आग लगाकर उनके पास धुआं करना बेहतर होगा। इससे कई बीमारियों से बचाव होता है। पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. गुरमीत सिंह सचदेवा ने बताया कि सभी पशुपालकों को अपने पशुओं को गलाघोंटू बीमारी के टीके लगवाए जाना आवश्यक है।
मवेशियों के लिए गर्मी और उमस भरा मौसम नुकसानदायक साबित होता है। इस मौसम में पशुओं की आहार ग्रहण क्षमता घट जाती है साथ ही दूध उत्पादन भी कम हो जाता है। इस मौसम में संक्रामक रोगों का प्रकोप भी बढ़ जाता है। इससे मवेशियों की जान को खतरा पैदा हो जाता है। पशु चिकित्सकों का मानना है कि पशुपालक थोड़ी सी सजगता से काम लें तो पशुओं को स्वस्थ रखना आसान है। वहीं दूध का उत्पादन गुणवत्ता के साथ बनाए रखा जा सकता है।
पशुपालक कालूराम चौधरी, उमेश कुमार और अजीम खान आदि ने बताया कि जो पशु एक माह पहले 10 किलो दूध दे रहा था, अब वह केवल छह से सात किलो दूध दे रहा है। उधर, पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. गुरप्रीत सिंह सचदेवा ने बताया कि उमस और गर्मी में पशुओं को थैलेरिया एवं बेबीसिया जैसी गंभीर बीमारी हो सकती है। इसके अलावा लंगड़ा बुखार, गल घोटू, मुंह-खुर्र का रोग व पका खुर सहित अन्य कई बीमारियां पशुओं को सहजता से निशाना बनाती है। संक्रमण के चलते दूध की गुणवत्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। पशुपालक को चाहिए कि वह मौसम के अनुसार ही पशुओं को चारा खिलाए। मवेशियों को धूप में न बांधे। गोबर व मूत्र की सही निकासी करें। पशुओं को छायादार एवं हवादार जगह पर बांधना जरूरी है। कोशिश की जाए कि उनके लिए पंखों की व्यवस्था हो। उनकी खुरली एवं उसके कोनों की लगातार सफाई करें। डॉ. एफडी खान ने बताया कि गर्मी में पशुओं को दिन में चारा देने की बजाय सुबह-शाम देने को प्राथमिकता दें। हरे चारे के साथ दिए जाने वाले दलिए की भी मात्रा ज्यादा रखें। जोहड़ या तालाब में पशु ले जाने से पहले उसको घर पर साफ एवं ठंडा पानी पिलाकर ले जाने का प्रयास करें ताकि गंदे पानी पीने से बचाया जा सके। शाम के समय मच्छरों के लिए पशुओं पर मच्छरदानी का प्रयोग करें। उपलों में आग लगाकर उनके पास धुआं करना बेहतर होगा। इससे कई बीमारियों से बचाव होता है। पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. गुरमीत सिंह सचदेवा ने बताया कि सभी पशुपालकों को अपने पशुओं को गलाघोंटू बीमारी के टीके लगवाए जाना आवश्यक है।